जैसा आहार वैसा विचार Gautam Buddha Story As is the diet,so is the thought

Gautam Buddha Story

नमस्ते दोस्तों आज हम आपके लिए एक बहुत ही शानदार स्टोरी लेकर आये हे जिसका नाम हे |

Gautam Buddha Story:- जैसा आहार, वैसा विचार

भगवान् बुद्ध अपने शिष्यों को उपदेश दे रहे थे कि तभी एक शिष्य ने उठकर कहा, “भंते! क्या यह सत्य है कि जो व्यक्ति जैसा अन्न खाता है, उसका मन भी वैसा ही हो जाता है।” यह सुनकर भगवान् बुद्ध ने एक कथा सुनाई—

किसी जंगल में एक साधु रहता था। कितने ही लोग उसके दर्शन करने को आते। जो भी जाता, उसे शांति मिलती। एक दिन उस देश के राजा भी वहाँ गए। देखा, साधु एक वृक्ष के नीचे बैठे हैं। सर्दी और वर्षा से बचने का कोई प्रबंध नहीं है।
राजा ने कहा, “महात्मन्! यहाँ तो बहुत कष्ट होता होगा, आप मेरे साथ चलिए, महल में रहिए।”
साधु पहले तो माना नहीं, राजा ने बहुत आग्रह किया तो बोले, चलो। ”
महल में गए एक सुंदर कमरे में ठहरे हर समय नौकर उपस्थित रहने लगे। अच्छा भोजन मिलने लगा। तीन मास व्यतीत हो गए। राजा उसकी पूजा करते रानी उसमें श्रद्धा रखती.

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एक दिन रानी नहाने के लिए स्नानागार में गई। नहाकर उठी तो वह हीरों का हार पहनना भूल गई, जो उसने उताकर स्नानागार में रख दिया था। हार वहीं पड़ा रहा। रानी के पश्चात् साधु स्नानागार में गया। हार को देखा, उठाकर अपने कोपीन में छुपा लिया। स्नानागार से निकल महल से बाहर चले गए। कुछ देर पश्चात् रानी को हार का ध्यान आया। दासी से बोली, “स्नानागार में हार छोड़ आई हूँ, उसे ले आओ।”
परंतु वहाँ तो हार नहीं था। खोज होने लगी। पूछा गया, स्नानघर में रानी के पश्चात् कौन गया था? पता लगा कि महात्माजी गए थे। महात्मा की खोज होने लगी। महात्मा मिले नहीं। राजा को ज्ञात हुआ तो उसने सिपाहियों को आज्ञा दी, “उस साधु के पीछे जाओ। उसे पकड़कर ले आओ।”

इधर से महात्मा शहर से बाहर निकले। जंगल में चले गए। दिनभर चलते रहे। पाँव थक गए। भूख भी सताने लगी तो जंगल का एक फल तोड़कर खा लिया, फल था एक ओषधि, उससे दस्त लग गए। इतने दस्त आए कि महात्माजी निर्बल हो गए। तभी उन्हें हार का ध्यान आया। उसे देखते ही बोले, ‘मैं इसे क्यों उठा लाया? मैंने चोरी क्यों की?’उसी समय वापस चल पड़े। आधी रात के समय राजा के महल पर पहुँचे। आवाज दी। राजा जागे। महात्मा ने उसके पास जाकर कहा, “राजन्! आपका यह हार है, ले लो। मैं यहाँ से उठाकर ले गया था। मुझसे अपराध हुआ। मैं क्षमा माँगने आया हूँ।”

राजा ने आश्चर्य से कहा, “वापस ही लाना था, तो आप इसे ले क्यों गए
साधु ने कहा, “राजन्! क्रोध न करना, तीन मास तक मैं तुम्हारा अन्न खाता रहा, उससे मेरा मन पापी हो गया। जंगल में जाकर दस्त आए। शरीर शुद्ध हो गया। तुम्हारे अन्न का प्रभाव समाप्त हो गया। तब मैंने वास्तविकता को जाना और वापस आ गया।”
इसीलिए कहते हैं कि जैसा अन्न खाओगे वैसा मन बनेगा। जो व्यक्ति गंदा और खोटा अन्न खाता है, तो उसका मन कभी अच्छा होगा ही नहीं। अन्न को जिस भावना से कमाया हो और तैयार किया गया हो, उसका प्रभाव मन पर पड़ता है।
दोस्तों इस कहानी से हमें यह सीख मिलती हे की हमें शुद्ध आहार ग्रहण करना चाहिए और खराब आहार को त्याग देना चाहिए खराब आहार से हमारा मन और शरीर ख़राब होता हे.
धन्यवाद.

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